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Wednesday 3 September 2014

औरत (कविता )

                           मनन कुमार सिंह

परिचय---  
1992 में मधुबाला नाम से 51 रुबाइयों का एक संग्रह प्रकाशित, 101 कविताओं के संग्रह इंद्रधनुष के इस मासांत में प्रकाशन की प्रक्रिया में आ जाने की योजना, अधूरी यात्रा नाम से एक यात्रा-वृत्तात्मक लघु काव्य-रचना भी पूरी तरह प्रकाशन के लिए तैयार, लघु कथाओं का एक संग्रह तैयार हो रहा है, नामकरण होना अभी बाकी 
संप्रति भारतीय स्टेट बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद पर मुंबई में कार्यरत
संपर्क-----मनन कुमार सिंह ,
-506, कैप्रीकॉर्न अपार्टमेंट जनकल्याण नगर,मार्वे रोड  मालाड ( पश्चिम ) मुंबई -400095
(महाराष्ट्र) - मेल:madhukarji50@gmail.com  
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इस्रायल-फिलिस्तीन के बीच लगातार जारी संघर्ष में  बरसने वाले आँसू गैस के गोलों में  एक महिला ने अमन का प्रतीक खोजा  है। वह महिला गोलों के खोल इकट्ठा कर उनमें मिट्टी भरकर फूल लगाती है, शांति का संदेश देती है।युद्ध से उब चुके दोनों तरफ के लोगों का इस प्रयास को नैतिक समर्थन मिल रहा है..(नाभाट 03 जून 2014)..उस औरत के प्रयास कि बंदगी में प्रस्तुत है एक कविता....





औरत



वह भी तो एक औरत है !

कहाँ बघारती शेख़ी फिरती?

कहाँ बिखेरती नफरत है?

कहती :बम तू फोड़ो गिन-गिन,

फूल खिलेंगे मेरे अनगिन,

तेरे बम के खोले सारे

मेरे फूलों के गमले न्यारे,

बैर-विरोध के अमले तेरे,

नासमझी के जुमले तेरे,

हारेंगे, मिट  जायेंगे,

देंगे आँसू, क्या पायेंगे?

अमले-जुमले रोयेंगे,

फूल सब आँसू धोयेंगे।

नासमझी का धुआँ उठाना

यह तो तेरी फितरत है,

हँसता-खिलता दर्द मिटाता

फूल खुदा की रहमत है

अनायास जिह्वा कह उठती--

बम के खोलों को गमला करना

यह तो खुदा की नेमत है,

जले दिलों में प्यार जगा,

तब तो होती सोहरत है।

वह भी तो एक औरत है!

कहाँ बघारती शेख़ी फिरती?

कहाँ बिखेरती नफरत है?

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मनन कुमार सिंह









5 comments:

  1. प्रथम अंक में "औरत" प्रतिष्ठित,
    सफलता में संशय नहीं किन्चित।

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  2. इतनी अच्छी कविता के लिए बधाई। मुझे बेहद पसंद आई यह कविता, गाज़ा फिलिस्तीन की बात तो करती ही है, साथ में औरत के अनेक रूपों की भी. युद्ध में औरत की गतिविधिओं आदि विषय पर विस्तार से चर्चा की ज़रुरत है.

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  3. Bahut sarthak kavita hai aurat!!! Badhai!

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