रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
परिचय---
दो कविता संग्रह, कई प्रमुख अखबारों और पत्रिकाओं से जुड़े रहे, फिलहाल, पीपुल्स समाचार भोपाल में बतौर सब एडिटर कार्यरत हैं. हरित क्रांति, वैश्विक शान्ति के कई प्रोजेक्ट्स में सक्रिय। www.greenearth.org का संपादन.
संपर्क-----टॉप 12, हाई लाइफ काम्प्लेक्स चर्च रोड, जहाँगीराबाद भोपाल
स्थायी पता-- 110, R M P नगर, फेज 1, टिला कॉलोनी रोड, विदिशा मध्य प्रदेश 464001
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(कविता) .. बादल के घर में
मैं बादलों के घर में रहता हूं
मैंने बादलों से बनाया है एक घर
नहीं है उसका कोई मोहल्ला और पता
नहीं है उसकी दीवारें किसी की दीवारों से सटी
पूरी धरती पर तैरते मेरे घर की
एक खिड़की से दिखता है चांद
एक दरवाजे से दिखता है सूरज
यहां वहां चला जाता हूं नदियों की सतह पर
सूखती है नदी बादलों को देखती है
नहीं बदलता जीवन नहीं बदलता उसका भाग्य
जब भी बरसात हुई- नदी को जैसे कुछ मिला
मैं जब भी देखता हूं बाहर एक पेड़ दिखता है
बादलों से बने घर में उसकी पत्तियां आती हैं
मेरी दोस्त बन कर ऊंचाई तक साथ रहती हैं
कुछ देर बाद खो जाती हैं- मैं न जाने कहां चला जाता हूं
बादलों का घर लिए यहां वहां...
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मैं बादलों के घर में रहता हूं
मैंने बादलों से बनाया है एक घर
नहीं है उसका कोई मोहल्ला और पता
नहीं है उसकी दीवारें किसी की दीवारों से सटी
पूरी धरती पर तैरते मेरे घर की
एक खिड़की से दिखता है चांद
एक दरवाजे से दिखता है सूरज
यहां वहां चला जाता हूं नदियों की सतह पर
सूखती है नदी बादलों को देखती है
नहीं बदलता जीवन नहीं बदलता उसका भाग्य
जब भी बरसात हुई- नदी को जैसे कुछ मिला
मैं जब भी देखता हूं बाहर एक पेड़ दिखता है
बादलों से बने घर में उसकी पत्तियां आती हैं
मेरी दोस्त बन कर ऊंचाई तक साथ रहती हैं
कुछ देर बाद खो जाती हैं- मैं न जाने कहां चला जाता हूं
बादलों का घर लिए यहां वहां...
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रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
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