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Wednesday 3 September 2014

हिन्दी का वैश्विक परिप्रेक्ष्य (आलेख)


                     डॉ अनिता कपूर



परिचय - एम.ए. हिन्दी, अँग्रेजी एवं संगीत (सितार), पी.एचडी (अँग्रेजी),

अमेरिका से प्रकाशित हिन्दी समाचारपत्र यादेंकी प्रमुख संपादक, बिखरे मोती, अछूते स्वर, ओस में भीगते सपने, कादंबरी, साँसों के हस्ताक्षर (कविता-संग्रह), दर्पण के सवाल (हाइकु-संग्रह), अनेकों भारतीय एवं अमरीका की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, कॉलम, साक्षात्कार एवं लेख प्रकाशित, प्रवासी भारतीयों के दुःख-दर्द और अहसासों पर एक पुस्तक शीघ्र प्रकाशीय. अनेका नेक प्रतिष्ठित एवं विशिष्ट सम्मान.


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               हिन्दी का वैश्विक परिप्रेक्ष्य----- डॉ अनिता कपूर 


वैश्विक परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में आज हिन्दी भाषा की जब चर्चा होती है, तो पाते हैं कि, भारत में हिन्दी की  ऐतिहासिक परंपरा, जो हमारे समाज और संस्कृति का प्रतिबिंब है, उसे विश्व के स्तर पर महत्त्व और अब व्यापक स्वीकृति भी मिल रही है। हिन्दी न सिर्फ संवाद का माध्यम है, अपितु संस्कृति और साहित्य की भी सबल समर्थ संवाहिका बन गयी है। उदाहरण के तौर पर जब आज अचानक रास्ते में बे-ट्रांसिट (अमेरिका) की बस पर मेक्डोनाल्ड का विज्ञापन हिंदी में लिखा हुआ पाया, पहले तो एकदम से ही आँखों पर जैसे यकीन ही नहीं हुआ....पर दूसरे ही क्षण मन जैसे गर्व से भर उठा, यह सोचकर कि, हिंदी की चादर विश्व को कितनी ज्यादा ढाँप चुकी है। भारत में अंग्रेजी की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद आँकड़ों के हिसाब से हिन्दी बोलने वालों की संख्या दुनिया में आज तीसरे नंबर पर है।  विदेशी विश्वविद्यालयों ने हिन्दी को एक महत्त्वपूर्ण विषय के रूप में अपनाया है। जहाँ हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थियों में सिर्फ भारतीय मूल के ही नहीं, वरन् स्थानीय मूल के और अन्य देशों के विद्यार्थी भी हैं। वहाँ संस्कृति और समाज के अध्ययन के अंतर्गत हिन्दी के पठन-पाठन की व्यवस्था है।
आंकड़ों के अनुसार आज अमरीका के 51 कालेजों में हिंदी की पढ़ाई हो रही हैं, जिसमे कुल 1430 छात्र पढ़ रहे हैं। अमरीका के ही पेनसिल्वानिया यूनिवर्सिटी में एम बी ए के छात्रों के लिए हिंदी का 2 साल का कोर्स भी चल रहा है.

न्यूयोर्क यूनिवर्सिटी हर वर्ष स्टार-टॉक के नाम से ख़ास तौर पर अमरीका में पैदा हुए भारतीय बच्चों को विशेष पद्धति से पढ़ाने के लिए विशेष ट्रेनिंग भी देती है। यहाँ कई संगठन हिन्दी के प्रचार का काम करते हैं। न सिर्फ भारतीय मूल के बच्चे वरन यहाँ के स्थानीय अमरीकन मूल के निवासी भी, भारत की संस्कृति से रूबरू होने के लिए हिन्दी सीखने की इच्छा रखते हैं। नृत्य क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए भारत को चुनने वाली अमरीकन मूल की नर्तकी मारिया रोबिन से जब भारतीय नृत्य से लगाव के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि, उन्हें भारत से ही नहीं बल्कि हिन्दी भाषा से भी लगाव है। वह हिन्दी फिल्में देखना पसंद करती हैं और शाहरूख खान मारिया का पसंदीदा कलाकार हैं। मारिया यहाँ होने वाले कम्युनिटी प्रोग्राम में हिंदी गीतों पर नृत्य भी करती है। मारिया का हिन्दी भाषा से लगाव ही उसे नृत्य की और ले गया। 

हमने दुनिया को वैसे भी काफी कुछ दिया हैं शून्य से लेकर दशमलव तक,  गणित से लेकर कालगणना तक।  ऐसे ही अब हिंदी की बारी है।  हिंदी भाषा तो बहुत सरल है। हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए अमरीका के कैलिफोर्निया, न्यूयोर्क, नॉर्थ करोलिना और टेक्सास में विशेष रूप से बहुत काम किया जा रहा है। यहाँ के कम्युनिटी सेंटर्स में हिंदी के क्लासेस चलती है।  स्कूल में
आफ्टर स्कूल
 विशेष कक्षाएँ लगाई जाती हैं। शनिवार और रविवार को बाल विहार स्कूल चलते हैं; जहाँ भारतीय संस्कृति के बारें में भी छोटी-छोटी कहानियों द्वारा परिचय करवाने का प्रयास सराहनीय है। न्यूयॉर्क में तो भारतीय विद्या भवन भी हैं, जहाँ न सिर्फ हिंदी पढ़ाते है, वरन संगीत और नृत्य की शिक्षा भी दी जाती हैं। स्कूल की छुटियों में अमरीका में विशेष कैंप भी आयोजित किये जातें हैं।  अभिवावकों से निवेदन किया जाता है कि घर में वो बच्चों से अधिकतर हिंदी में ही वार्तालाप करें, जिससे उन्हें हिंदी में बोलने में मदद मिलेगी। बच्चों में हिंदी के प्रति  रूचि पैदा करने के लिए हिंदी फिल्मों और गीतों का भी उपयोग किया जाता है जैसे गायन और नृत्य प्रतियोगिता।

आज विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय के मन में यह सवाल कुछ धुँधला सा  होता जा रहा  है कि...."अपना देश छोड़ कर हम यहाँ क्यों आ बसे हैं। हमारे इस फैसले से कहीं हमारें बच्चें अपनी संस्कृति और भाषा से दूर तो नहीं हो जायेंगे?..आदि आदि।"
भारत से विदेशों में आने का वैसे तो एकमात्र कारण आर्थिक बहुलता, धन- वैभव एवं एक उत्तम जिंदगी बसर करना ही है; पर साथ ही में वो बच्चों को बिलकुल उसी प्रकार से पालना और संस्कार देना चाहते है..जैसे वो भारत में रहते हुए दे सकते थे... और बिलकुल वैसा होना संभव भी हो पा रहा है, तो उसका श्रेय, यहाँ की बहुत सी सामाजिक संस्थाओं और स्कूलों को भी जाता है, जो हिन्दी के प्रचार-प्रसार में जी जान से जुटी हैं। भाषा और संस्कृति तो साथ ही साथ चलती हैं तो धर्म भी अनायास ही, जुड़ा ही रहता है। अमरीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों को मैंने अपने यहाँ प्रवास के दौरान ज्यादा ही धार्मिक पाया है। आज अमरीका और लंदन में भारतीयों की बढ़ती तादाद की वजह से अमरीका और इंग्लैंड के ज्यादातर शहरों में मंदिर और गुरुद्वारे नजर आने लगें है। बच्चों में धार्मिक जाग्रति और ज्ञान से जोड़े रखने में यहाँ होली और दीवाली जोर -शोर से मनाई जाती है। माता- पिता भी बच्चों को लगातार मदिर और गुरुद्वारा ले जाते है। विदेशों में हिन्दू मंदिरों की बात करें, तो आप जानकर हैरान होंगे कि यहाँ बाकयदा हनुमान चालीसा हिंदी में पढ़ना सिखाया जाता हैं। अमेरिका में रहने वाले भारतीय परिवारों की नई पीढ़ी को हिन्दी से जोडने के लिए विश्वविद्यालयों ने एक खास पहल की है। जून के आखरी सप्ताह में यहाँ स्कूली बच्चों के लिए एक महीने का हिन्दी -उर्दू शिविर लगाया जाता है। इसमें विशेष पद्धति से हिन्दी और उर्दू सिखाई और समझाई जाती है और इसके लिए अमेरिका की सरकार ने खास अनुदान भी देती है।

हिंदी के कोचिंग सेण्टर भी हिंदी को बढ़ावा देने में अपना योगदान दे रहे हैं। साहित्य की हिन्दी के योगदान में, महक बनी रहे, उसका प्रयास अमरीका की हिंदी सिमितियाँ लगातार करती रही है... कवि-सम्मलेन और हिंदी-गोष्ठियों के माध्यम से यहाँ १५ अगस्त (स्वंत्रता दिवस ) को भारत की तरह ही परेड व सभी भारतीय राज्यों की झांकियाँ भी निकाली जाती हैं। मेला भी भारत के मेले की तर्ज़ पर होता है। कुल मिला कर यहाँ अमरीका में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों ने एक अपना भारत यहाँ भी बसा लिया है।
भाषा की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती...और न की किसी क्षेत्र का बंधन। आपको यह जाकर और भी गौरान्वित महसूस होगा कि  हिंदी अमरीका की राजनीति से भी अछूती नहीं रही। हिन्दू लीडर श्री राजेन जेड जी, अमरीका के नेवाडा, कैलिफोर्निया, अरिजोना तथा और भी कई राज्यों में असेम्बली और सीनेट में सत्र के दौरान, सत्र की शुरूआत हिन्दू प्रार्थना से करने के लिए आमत्रित किये जा चुके हैं।

विश्व में हिन्दी के परिप्रेक्ष्य की बात जब हम करते हैं तो कई धाराएँ बहती हुई दिखाई देती है....जिसमे प्रवासी हिन्दी साहित्यकार प्रमुख है, जिन्होंने विदेशों में रहते हुए भी अपनी भाषा से जुड़े रहकर हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं को समृद्ध किया, फिर चाहे वो कहानी, कविता, नाटक, नृत्य और पत्र-पत्रिकाएँ हों या हिन्दी को पढ़ाना हो। हिन्दी के व्यापक विस्तार में विदेश मे बने मंदिरों, धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं और उनसे जुड़ी गतिविधियों को नकारा नहीं जा सकता, जो सतत रूप से हिन्दी के विकास में लगे हुए हैं। कवि-सम्मलेन और हिंदी-गोष्ठियों के माध्यम से भी हिन्दी को बढ़ावा मिल रहा है। भाषा, संस्कृति और धर्म एक ऐसा त्रिकोण हैं जो हमेशा ही जुड़े रहते हैं। आज विश्व का कोई भी देश इस त्रिकोण से अछूता नहीं मिलेगा जहां भारतीय बसते हो। फिर वो लंदन का साउथहाल हो, नेहरू सेंटर या जिमख़ाना क्लब हो। यहाँ होने वाले कार्यक्रम तो किसी भी भारतीय को प्रवासी होने की याद ही नहीं करवाते। प्रतिवर्ष लन्दन में भारतीय उच्चायोग द्वारा सार्वजनिक स्तर पर समारोहपूर्वक मनाया जाने वाला सबसे बड़ा कार्यक्रम, जिमख़ाना क्लब व उसके साथ सटे बहुत बड़े मैदान में स्वतन्त्रता दिवस का आयोजन होता है, जिसमें लगभग 10-12 हजार भारतीय भाग लेते हैं। एक घण्टे-भर का कवि सम्मेलन भी होता है।

वैश्विक स्तर पर हम हिन्दी भाषा को देखें तो मुख्य रूप से उन प्रवासी साहित्यकारों के योगदान का जिक्र करना जरूरी है, जिनके पूर्वज गुलाम भारत से मजदूरी के लिए भिन्न देशों में ले जाये गए थे, फिर भी उन्होने अपनी सांस्कृतिक अस्मिता और भाषा को बचाए रखा; जिसके फलस्वरूप आज देखें कि, मारीशस, फ़िजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गयाना में भारतीय कलम से साहित्य को कितना समृद्ध किया जा रहा है। यह और बात है कि वहाँ बोले जाने वाली हिन्दी उस देश के नाम के साथ जानी जाती है जैसे फ़िजी हिन्दी, मारीशस हिन्दी वगैरह।

भाषा के विकास और प्रचार के लिए पत्र-पत्रिकाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। अमरीका, कनाडा, यू.के. नार्वे, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रेलिया से कई पत्रिकाएँ और समाचार पत्र लगातार प्रकाशित हो रहे है। जैसे हिन्दी टाइम्स और हिन्दी अब्रोड, साप्ताहिक हिन्दी समाचार कनाडा से, हिन्दी गौरव ऑस्ट्रेलिया से, हिन्दू टाइम्स, न्यूज़ीलैंड से भारत दर्शन, विश्वा, यादें, हिन्दी-जगत, हिन्दी-चेतना और कर्मभूमि अमरीका से। 

जनसंचार माध्यम से हिंदी को लोकप्रिय बनाने में जनसंचार माध्यमों का भी अत्यधिक योगदान है। रेडियो, टेलीविजन, और अब इंटरनेट के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। विदेशों में ऐसे कई चैनल हैं जो दिन भर हिंदी के गाने और फिल्में दिखाते है। हिंदी प्रेमी इंटरनेट के माध्यम से भी हिंदी साहित्य तक पहुँच रहे हैं, और हिन्दी में लिखते भी हैं।

हिन्दी भाषा की विश्व स्तरीय भूमिका का मूल्यांकन भारतीय प्रवासियों द्वारा किए गए कार्यों, उनके लेखन और साहित्यिक उपलब्धियों द्वारा आँका जाना ठीक है, पर इसी के साथ वहाँ कार्यरत प्रशासनिक अधिकारियों और दूतावासों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को और आगे बढ़ कर योगदान देना होगा जिससे हिन्दी विश्व की पहली अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन जाए। विदेश में भारतीय दूतावासों को खासकर हिन्दी में और काम करना चाहिए। इस दिशा में हमें अभी और भी एकजुट होकर बहुत काम करने की जरूरत है। जिस तरह पूरी दुनिया में अँग्रेजी का बोलबाला है, और भारतीय अँग्रेजी, ब्रिटिश अँग्रेजी तथा अमेरिकन अँग्रेजी जैसे पदबंध प्रचलित हो गए हैं... वैसे ही एक संभावना हरेक हिन्दी प्रेमी के मन में है कि, ठीक इसी तरह भविष्य में हिन्दी भी, ब्रिटिश हिन्दी, अमेरिकन हिन्दी या रशियन हिन्दी हो जाए। इस सपने को पूरा करने के संदर्भ में हमें उन देशों से सीखना होगा जो अपनी मातृभाषा से प्रेम करते है और उसके प्रचार के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। लेकिन जहाँ  इस बात की ख़ुशी है कि, विदेशों में हिन्दी की महत्ता पिछले सालों में काफी बढ़ी है, वहीँ इस बात का दुःख भी है कि भारत में नयी पीढ़ी पर अंग्रेजी का भूत चढ़ रहा है। हिन्दी हर प्रकार से एक सशक्त और सम्पन्न भाषा है। कहीं ऐसा न हो कि विदेशों में हैसियत हासिल कर रही हिन्दी खुद भारत में उपेक्षित हो जाए।
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1 comment:

  1. मैकडोनाल्ड्स के विज्ञापन हिंदी में लुभावने तो लगते हैं, पर केवल बाहर, मुझे तो दिल्ली में भी स्टारबक्क्स को देखकर कोई ज़्यादा ख़ुशी नहीं हुई. अनीता जी से पूर्णतः सहमत हूँ कि विस्तार भाषा का होना चाहिए, हमारे उत्पादों के प्रचार प्रसार के साथ साथ.

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