सम्पादकीय
यह ग्लोबल दर्शन का पहला अंक है, सर्वप्रथम। आशा है कि इस ब्लॉग के साथ हम आपके मन आँगन पर एक ऐसी दस्तक देंगे कि उसके कुछ नए द्वार खोलने में कामयाब रहेंगे। मुझसे जब पवन जी ने कहा कि मैं आगमन ग्रुप की एक ऐसी पत्रिका का संपादन शुरू करूँ, जो पूर्णतः विदेश में, हिंदी में रचे जा रहे साहित्य को समर्पित हो, तो मुझे बहुत बड़े पारितोषिक के मिलने का एहसास हुआ था. मेरी उनसे ये बात तभी हुई, जब मैं कनाडा में थी. लेकिन अब पवन जी इस पत्रिका से नहीं जुड़े हैं. मुझे ब्लॉगिंग बिलकुल नहीं आती. और मैं तरुण सोनी तन्वीर जी को कभी पर्याप्त धन्यवाद नहीं दे पाऊँगी। उन्होंने जो मेरी मदद की है, वह एक ऐसे प्रोफेशनल कमिटमेंट का परिचायक है, जिससे साहित्य के सभी कामों में आस्था बनती है.
पत्रिका ब्लॉग की शक्ल में होगी, लेकिन बिलकुल खुले विचारों वाली। मैंने इसके स्वरुप को थोड़ा विस्तार दे दिया है. पत्रिका विदेशी पृष्ठभूमि में हिंदी में रचे जा रहे साहित्य को समर्पित होगी. और उस सारे साहित्य को भी, जो देशी पृष्ठभूमि में है, लेकिन जिसके कारक विदेशी हैं. या जहाँ इस किस्म के संवाद हैं.
यात्रा वृत्तांत, कहानी और कविता के साथ साथ, यहाँ लेख और व्यंग्य् की बहुत गहरी सम्भावना है. इन सब विधाओं में हम कल्पना, सूचना और संवाद की ज़मीन पर काफी दूरी तय कर सकते हैं. यूँ भी, आज की दुनिया में आँखों देखा सुना बहुत कुछ रहस्यमय जान पड़ता है. अपने इस आये दिन की ज़िन्दगी के विश्लेषण से उस बहुत बड़े व्यवसाय की खबर लेंगे, जो पत्रकारिता और न्यूज़ मीडिया है.
साहित्य हमारी अपनी भाषा में और अपनी भाषा का, हमारी समूची अस्मिता और इच्छाओं को परिभाषित करता है. इस पत्रिका में हम अपने इर्द गिर्द, और दूर दराज़ की भी दुनिया की खबर लेंगे, हर उस एहसास और सूचना की बेहतर पड़ताल करेंगे, जो हमें दी जा रही हैं, कई बार हम पर लादी जा रही हैं, किसी अंतर्राष्ट्रीय वार्ता अथवा संधि सम्मलेन की अनैतिक शर्तों की तरह.
वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन और वर्ल्ड बैंक जैसी तमाम संस्थाओं में हमारी आवाज़ बुलंद हो, और हम अपनी आवाज़ को बखूबी पहचानें, इस मंगल कामना के साथ आप सबको स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं। स्वतंत्रता दिवस क्योंकि विभाजन का भी समय था, जिसके परिणामों से हम अभी तक नहीं उबर पाए, इस अंक की विशेष प्रस्तुती है, पाकिस्तानी सरहद के करीब लिखी गयी श्री मनोहर गौतम जी की क्षणिकाएँ, जो वहां के आये दिन पेंचीदे होते जीवन का सच दर्शाती हैं.
आप सबके सहयोग के लिए आभारी हूँ. पुष्पा सक्सेना जी को, और उषा राजे सक्सेना जी को सर्वथा अप्रकाशित कहानियों के लिए विशेष धन्यवाद।
पंखुरी सिन्हा
नई दिल्ली
1 सितम्बर 2014
पंखुरी जी, आपकी अन्य गतिविधियों के अलावा इस ब्लॉग के माध्यम से विदेशों में रचे जा रहे हिंदी साहित्य से हमे रु-ब-रु कराने की आपकी मुहिम को सलाम और आपकी टीम को सलाम
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद अनवर सुहैल साहब। आपकी शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ.
ReplyDeleteआदरणीया पंखुरी जी , हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | आज साहित्य लेखकों और पाठकों के परिप्रेक्ष्य में सरहदों से परे है | इस दृष्टि से आपकी ''ग्लोबल दर्शन '' के रूप में यह पहल निःसंदेह स्तुत्य है | उम्मीद है वसुधैव कुटुम्बकम एवं सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना के साथ ''ग्लोबल दर्शन '' सम्पूर्ण विश्व साहित्य और मानवता को एक सूत्र में पिरोने का नेक माध्यम बनेगा ! आपकी लम्बे अरसे की मेहनत सफलीभूत हुई , आपके प्रयास , आपकी ख़ुशी में हम सब शामिल हैं !
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद अभिनव अरुण जी, इतनी खूबसूरत टिप्पणी के लिए आभारी हूँ. वसुधैव कुटुम्कम का आदर्श तो निश्चित ही शिरोधार्य है. हिंदी लेखन के दायरे को हम विस्तार दें, यह भी प्रयास रहेगा गहराई में उतरने के साथ साथ. आपका शामिल होना ही इस प्रयास को सार्थक बनाता है
Deleteपंखुड़ी जी, आपका अथक प्रयास रंग लाया है,
ReplyDeleteप्रवासी सन्दर्भ का 'ग्लोबल दर्शन' समक्ष आया है,
पहला अंक, पहली दस्तक, "औरत"हुई प्रतिष्ठित,
दिनानुदिन यश फैलेगा, संशय नहीं कहीं किंचित।
शुक्रिया मनन जी, औरत कविता सचमुच मुझे पसंद आई. हम खबरों को कितनी सरसरी निगाहों से पढ़ जाते हैं. रुकें, सोचें, तो कितनी सार्थक और संवेदनशील कविताएं बनती हैं. सीरिया पर आपकी एक कविता का इंतज़ार है.
Deleteहार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद दिलबाग साहब। अगर आप कश्मीर से ताल्लुक रखते हों, तो एक रचना भेजें सरहद पर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteसादर ---
कभी मेरे ब्लॉग में भी तो पधारें